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इस तरह पढ़े हनुमान चालीसा, जल्दी होगी मनोकामना पूरी!

Hanuman Chalisa kis tarah padhe: कई लोग तो ऐसे है उन्हें आज तक हनुमान चालीसा पढ़ने नहीं आती है. आज तक कोई चालीसा चाहे गायत्री चालीसा, लक्ष्मी चालीसा और शिव चालीसा पढ़ने नहीं आती. बस बैठ गए भगवान के सामने और पढ़ लिया… नहीं.

Hanuman Chalisa kis tarah padhe
Hanuman Chalisa kis tarah padhe

इस तरह पढ़े हनुमान चालीसा, जल्दी होगी मनोकामना पूरी!

चालीसा पढ़ने का भी एक नियम है. अगर कोई लक्ष्य लेकर पढ़ रहे हो तो उसका एक नियम है, पूरी जिंदगी पढ़ते रहोगे. तो भगवान की प्राप्ति नहीं है पर लक्ष्य लेकर अगर पड़ा है, भगवान की हनुमान चालीसा पढ़ रहे है तो उनकी मूर्ति या उनका फोटो आपके सामने होना चाहिए. एक घी का दिया अगर हनुमान चालीसा पढ़ रहे हो तो या तो घी का दिया जलाओ वह भी गाय के घी का, भैंस के घी का मत जलाना हनुमान जी कभी प्रकट नहीं होंगे.

गाय के घी का दिया जलाइए अगर चालीसा का पाठ कर रहे हो और बहुत ज्यादा संकट है बहुत ज्यादा परेशानी है तो हनुमान चालीसा का पाठ करो. तो उसके लिए तिल के तेल का दिया जलाए काले तिल के तेल का दिया. तीन पाठ प्रतिदिन करो और एक आसान से जीतने समय 9:00 बजे अगर आप बैठते हो पाठ करने तो 9:00 बजे ही बैठे.  11 दिन तक प्रतिदिन तीन पाठ रोज करो, एक पानी का लोटा कलश तांबे का जल अर्थात तांबे का लोटा हो स्टील का लोटा हो. तुम्हारे पास जो कलश हो उसमें जल भरकर एक सिक्का उसमें पटक कर एक लांग पटक कर प्लेट से ढक कर रख दो और प्रतिदिन बस टाइम पर बैठकर पाठ करो. 11 दिन पूर्ण होंगे मन से इसे करो. ऐसा करोगे तो आपको मनोकामना पूरी हो जाएगी.

श्री हनुमान चालीसा। Hanuman Chalisa Hindi

दोहा
श्रीगुरु चरन सरोज रज, निजमन मुकुरु सुधारि। बरनउं रघुबर बिमल जसु, जो दायक फल चारि।।
बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन-कुमार। बल बुधि बिद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस बिकार।।
चौपाई
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर। जय कपीस तिहुं लोक उजागर।।
राम दूत अतुलित बल धामा। अंजनि-पुत्र पवनसुत नामा।।
महाबीर बिक्रम बजरंगी। कुमति निवार सुमति के संगी।।
कंचन बरन बिराज सुबेसा। कानन कुण्डल कुँचित केसा।।
हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजे। कांधे मूंज जनेउ साजे।।
शंकर सुवन केसरी नंदन। तेज प्रताप महा जग वंदन।।
बिद्यावान गुनी अति चातुर। राम काज करिबे को आतुर।।
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया। राम लखन सीता मन बसिया।।
सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा। बिकट रूप धरि लंक जरावा।।
भीम रूप धरि असुर संहारे। रामचन्द्र के काज संवारे।।
लाय सजीवन लखन जियाये। श्री रघुबीर हरषि उर लाये।।
रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई। तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई।।
सहस बदन तुम्हरो जस गावैं। अस कहि श्रीपति कण्ठ लगावैं।।
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा। नारद सारद सहित अहीसा।।
जम कुबेर दिगपाल जहां ते। कबि कोबिद कहि सके कहां ते।।
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा। राम मिलाय राज पद दीन्हा।।
तुम्हरो मंत्र बिभीषन माना। लंकेश्वर भए सब जग जाना।।
जुग सहस्र जोजन पर भानु। लील्यो ताहि मधुर फल जानू।।
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं। जलधि लांघि गये अचरज नाहीं।।
दुर्गम काज जगत के जेते। सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते।।
राम दुआरे तुम रखवारे। होत न आज्ञा बिनु पैसारे।।
सब सुख लहै तुम्हारी सरना। तुम रच्छक काहू को डर ना।।
आपन तेज सम्हारो आपै। तीनों लोक हांक तें कांपै।।
भूत पिसाच निकट नहिं आवै। महाबीर जब नाम सुनावै।।
नासै रोग हरे सब पीरा। जपत निरन्तर हनुमत बीरा।।
संकट तें हनुमान छुड़ावै। मन क्रम बचन ध्यान जो लावै।।
सब पर राम तपस्वी राजा। तिन के काज सकल तुम साजा।।
और मनोरथ जो कोई लावै। सोई अमित जीवन फल पावै।।
चारों जुग परताप तुम्हारा। है परसिद्ध जगत उजियारा।।
साधु संत के तुम रखवारे।। असुर निकन्दन राम दुलारे।।
अष्टसिद्धि नौ निधि के दाता। अस बर दीन जानकी माता।।
राम रसायन तुम्हरे पासा। सदा रहो रघुपति के दासा।।
तुह्मरे भजन राम को पावै। जनम जनम के दुख बिसरावै।।
अंत काल रघुबर पुर जाई। जहां जन्म हरिभक्त कहाई।।
और देवता चित्त न धरई। हनुमत सेइ सर्ब सुख करई।।
सङ्कट कटै मिटै सब पीरा। जो सुमिरै हनुमत बलबीरा।।
जय जय जय हनुमान गोसाईं। कृपा करहु गुरुदेव की नाईं।।
जो सत बार पाठ कर कोई। छूटहि बन्दि महा सुख होई।।
जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा। होय सिद्धि साखी गौरीसा।।
तुलसीदास सदा हरि चेरा। कीजै नाथ हृदय महं डेरा।।

दोहा
पवनतनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप।

राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप।।

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