Mon. Sep 9th, 2024
Advertisement

अविश्वसनीय! एक तरबूज के लिए दो रियासतों के बीच युद्ध! Why Did Two Kingdoms Clash For a watermelon?

By Himanshu Grewal Feb 20, 2024
Why Did Two Kingdoms Clash For a watermelonWhy Did Two Kingdoms Clash For a watermelon

राजस्थान का रेतीला मैदान, चिलचिलाती धूप और जला देने वाली गर्मी. ऐसे में दो राजपूत राजा युद्ध के मैदान में खड़े थे बिना तश से मस हुए. एक और 3000 तो दूसरी तरफ 4000 वीरों की फौज जो मर मिटने के लिए तैयार थी. कुछ ही देर में जय भवानी के नारों के साथ ललकार हुई और दोनों सेनाएं लड़ पड़ी. घमासान युद्ध हुआ, हजारों योद्धा मारे गए और यह युद्ध इतिहास के पन्नों में छप गया. हालांकि दो राजाओं के बीच युद्ध होना कोई आम बात नहीं थी अक्सर राज्य, जमीर, अपनी शान और शौकत और रुतबे के लिए बड़ी-बड़ी लड़ाइयां होती रही है लेकिन यह लड़ाई राज और राजवाड़े या राजपूत शान के लिए नहीं थी बल्कि उस चीज के लिए थी जो बाजार में आसानी से मिल सकती है और वह चीज थी एक तरबूज. लेकिन अब सवाल यह है कि आखिर उस तरबूज में ऐसा था क्या जो दो रियासतें उस तरबूज पर मर मिटने को तैयार थी क्या उसमें हीरे मोती चढ़े थे या उसमें कोई ऐसी चीज थी जो उन्हें अमर बना सकती थी? और कौन थे वह राजा, किसकी जीत हुई और किसे मिला वह तरबूज? कहानी पढ़ो बड़ी दिलचस्प है जानने के लिए बने रहे अंत तक हमारे साथ.

ALSO READ: मुर्गे का रहस्य: सिर कटने के बाद भी 18 महीने तक कैसे रहा जिंदा?

क्यों एक तरबूज के लिए दो रियासतों ने खींची तलवारें?

Watermelon-fight

राजस्थान जो प्राचीन समय से ही अपनी शानदार कलर ग्लोरियस हिस्ट्री और राजपूतानी शान के लिए जाना जाता है और इसी शानो शौकत पर एक कवि ने क्या खूब लिखा है.

“यह है अपना राजपूताना नाज हमने तलवारों पे सारा जीवन काटा बरछी तीर करो पर यह प्रताप का पतन पाला है, आजादी के नारों पर कूद पड़ी थी यहां हजारों पद्मिनी या अंगारों पर”

यहां के राजपूतों की इसी शौर्य, साहस और बलिदान को देखकर साल 1800 में ‘जॉर्ज थॉमस‘ ने राजस्थान को राजपूताना नाम दिया था. इसके बाद कर्नल जेम्स स्टार्ट ने 1829 में एक किताब लिखी थे. एनल एंड एंटीक्विटीज आफ राजस्थान जिसमें उन्होंने राजस्थान को डीसेंट्रल वेस्टर्न राजपूत स्टेटस ऑफ इंडिया कहा. आज जहां देश में लोकतंत्र है लेकिन पहले राजतंत्र हुआ करता था. राजतंत्र में राज्य की सीमा को बढ़ाने और अपनी धाक जमाने के लिए हमेशा युद्ध हुआ करते थे. इस धरती पर कई घमासान युद्ध हुए हैं, कई कई दिनों और महीना तक जंग चलती रही थी, कई युद्ध ऐसे भी थे जिनके बारे में आज भी यह समझ नहीं आया कि आखिर वह हुए क्यों.

ऐसा युद्ध आपने कभी नहीं सुना होगा, तरबूज के लिए हुआ 2 सेनाओं के बीच घमासान युद्ध

करीब 375 साल पहले भी इसी तरह का एक युद्ध हुआ था जिसको नाम दिया गया ‘मैटररी रद्द मारवाड़ी’ इसका मतलब है तरबूज की लड़ाई और लड़ाई भी कोई छोटी-मोटी नहीं पूरा घमासान युद्ध हुआ वह भी दो रियासतों के बीच. शायद आपको सुनकर यकीन ना हो रहा हो लेकिन यह सच है. ऐसा सच जिसके ऊपर भले ही किताबें ना लिखी गई हो जो इतिहास के कुछ पन्नों में दफन है लेकिन आज भी राजस्थान के हर गांव में इस युद्ध का किस्सा सुनने को मिल जाएगा.

तो दरअसल किस्सा यूं है कि हिंदुस्तान के बड़े हिस्से पर मुगलों की हुकूमत थी और उस वक्त बादशाह ए हिंद थे शाहजहां. सन् 1644 में तब राजस्थान अलग-अलग रियासतों में बता हुआ था. जोधपुर, जैसलमेर, जयपुर, और उदयपुर जैसी बड़ी-बड़ी रियासतें हुआ करती थी. इन्हीं में से दो रियासतें थी नागौर और बीकानेर. उस समय बीकानेर रियासत के राजा थे करण सिंह और नागौर रियासत के राजा थे अमर सिंह राठौड़. बादशाह शाहजहां की मां राठौड़ वंश की ही राजकुमारी थी. दोनों रियासतों की सीमाओं पर दो गांव थे. बीकानेर रियासत का गांव था सिल्वर और नागौर का गांव था जकारिया.

इस तरह हुआ तरबूज के पीछे महायुद्ध

झगड़े के जड़ की शुरुआत तब होती है जब सिल्वर गांव का एक किसान अपने खेत में तरबूज उगाता है, यह खेत नागौर सियासत के एकदम बॉर्डर पर था मतलब यह की इसके ठीक बगल में जो खेत था वह जकरिया गांव का था. उस साल फसल बहुत अच्छी हुई, तरबूज की खेती दिन दुगनी, रात चौगुनी बढ़ने लगी, मुनाफा अच्छा हो रहा था तो इसलिए सिल्वा गांव का किसान बहुत खुश था. अपनी इसी खुशी में वह कभी-कभी तरबूज की बलों को निहारता और सोचता कि काश उसके तरबूज की बेल पूरे हिंदुस्तान में फैल जाए. खैर बेल हिंदुस्तान भर में तो नहीं फैली लेकिन बगल वाली खेत तक जरूर चली गई वही खेत जो जकारिया गांव में था और कुछ दिनों बाद इस पेड़ पर तरबूज लग गया.

एक दिन जब जखनिया गांव का किसान अपने खेत में टहल रहा था तब उसकी नजर उस तरबूज पर पड़ती है और वह उसे तोड़ने लगा लेकिन तभी सिल्वर गांव के किसान ने उसे रोक दिया उसने कहा कि यह बिल उसके खेत में लगी है और यह उसका तरबूज है. वही जखनिया गांव के किसान ने कहा कि बिल लगे कहीं भी गई हो लेकिन फेले उसके खेत में है इसलिए यह तरबूज उसका हुआ. इस खेत पर दोनों किसानों में बहस हो गई. देखते ही देखते नॉर्मल सी दिखने वाली बहस लड़ाई में तब्दील हो गई और दोनों ने अपनी लाठियां निकाल ली. कहते हैं कि वह लड़ने ही वाले थे तभी बीच में गांव का एक बुजुर्ग आकर खड़ा हो गया उसने उन दोनों से लड़ने की वजह पूछी और सारी बातें सुनने के बाद बुजुर्ग ने उन्हें मशवरा दिया कि वह दोनों किसान अपनी प्रॉब्लम लेकर पंचों के पास जाएं.

इसके बाद दोनों गांव की एक सामूहिक पंचायत बिठाई गई वहां भी घंटे तक इसी बात पर बहस होती रही कि तरबूज है किसका? एक किसान फसल लगाने का हवाला देता रहा और दूसरा अपनी जमीन का ऐसे में पंचायत का कोई भी रिजल्ट नहीं निकाला और दोनों किसान बिना सॉल्यूशन के अपने घर ही लौट गए. हालांकि, पंचायत में इतना डिसाइड जरूर हुआ कि दोनों में से कोई भी किसान तब तक तरबूज नहीं तोड़ेगा जब तक इसका फैसला नहीं हो जाता. दोनों गांव के लोग रात-रात भर जगे रहकर पहरा देने लगे. बात इतनी बढ़ गई थी की दोनों किसान अपनी प्रॉब्लम लेकर अपने-अपने राजा के पास पहुंच गए लेकिन अफसोस उन्हें राजा नहीं मिले.

दरअसल उस समय बीकानेर और नागौर दोनों रियासतें मुगल साम्राज्य के अधीन थी. बीकानेर के राजा करण सिंह मुगलिया काम से कहीं बाहर गए हुए थे और नागौर के राजा अमर सिंह राठौड़ भी अपने राज्य में नहीं थे तो ऐसे में दोनों किसान की लड़ाई अपने-अपने सेनापति के सामने पहुंची. किसानों ने सेनापतियों से कहा कि हुजूर हम आपकी प्रजा हैं बाढ़ आए या सुखा पड़े तब भी हम आपको लगान देते हैं ताकि वक्त आने पर हमारे आत्म सम्मान की लड़ाई आप लड़े. बताओ आपके राज्य का तरबूज कोई दूसरा राज्य कैसे हड़प सकता है?

फिर क्या था यह सुनते ही राजपूती रक्त खोलने लगा दोनों सेनापतियों ने लड़ाई अपनी आत्म सम्मान पर ली इसके बाद बीकानेर के सेनापति रामचंद्र मुखिया और नागौर के सेनापति सिंघवी सुखमल ने अपनी अपनी फौज तैयार की और दोनों राज्यों के बीच की सरहद यानी उस खेत पर जा पहुंचे जहां एक तरबूज मुंह फुलाके पड़ोसी राज्य के खेत में आराम फरमा रहा था.

तरबूज के लिए शुरू हुआ 7000 सैनाओं के बीच युद्ध

अब दोनों राज्यों के सेनापति एक दूसरे के सामने थे और इस बात पर बहस कर रहे थे कि तरबूज जो है उनका है. कोई भी झुकने को तैयार नहीं था इसके बाद दोनों राज्यों ने अपने सिपाही उस तरबूज की रखवाली के लिए लगा दिया, डिसाइड यह हुआ कि अब जो है युद्ध होगा और जो जीतेगा तरबूज उसी का होगा तब तक इसे कोई हाथ नहीं लगाएगा. चक्रीय की तरफ सेन के राजा अमर सिंह राठौर की फौज थी जिसमें 3000 सैनिक थे और सिल्वर की ओर से बीकानेर के राजा करण सिंह राठौड़ ने रामचंद्र को 4000 की फौज समेत लड़ने भेजा.

देखते ही देखते दोनों राज्यों ने मायनो में रखी तलवार एक खींच ली और जिस तरबूज के लिए लड़ाई हो रही थी उसे छोड़कर ना जाने कितने तरबूज घोड़े के पैरों तले दबकर शहीद हो गए. भयानक युद्ध हुआ, हजारों सिपाही मारे गए लेकिन तरबूज पर किसी ने आज नहीं आने थी. कहते हैं जब राजा अमर सिंह को इस युद्ध के बारे में पता चला तो वह सब कुछ छोड़कर आगरा के लिए निकल पड़े रास्ता लंबा था इसलिए उसे वहां पहुंचने में देर हो गई और तब तक युद्ध अपने पीक पर पहुंच चुका था.

वहीं दूसरी ओर अनजान राव अमर सिंह बादशाह शाहजहां के दरबार में बैठे गुहार लगा रहे थे कि उन्हें शाहजहां की मदद की जरूरत है वह हर महीने सल्तनत को लगान देते हैं और अपनी जान दाव पर लगाकर आपके लिए लड़ाइयां लड़ते हैं ताकि जब कभी हमें जरूरत पड़े तो आप हमारी मदद कर सकें. अब इसी दौरान राव अमर सिंह ने बादशाह को तरबूज की पूरी कहानी सुनाई और कहा कि आप भी इस मामले में हस्तक्षेप करें. इस बात को सुनते ही शाहजहां के दरबार में मौजूद सलावत खान और तमाम मंत्री राजा अमर सिंह की बेवकूफी पर हंसने लगे की बड़ा अजीब राजा है अपने काम का छोड़कर एक तरबूज के पीछे पड़ा है और खुद तो जो करें सो करें बादशाह को भी अपनी इस मूर्खता में शामिल करना चाहता है.

यह सुनकर राजा अमर सिंह को गुस्सा आ जाता है और उन्होंने अपनी तलवार से उससे पहले ही राजा ने भरे दरबार में सलामत खान की गर्दन धड़ से अलग करदी जिसके बाद दरबार में भगदड़ मच गई. सब इधर-उधर दौड़ने लगे. अब इस बात में कितनी सच्चाई है खैर ये तो नहीं पता लेकिन कहा तो यह भी जाता है कि बादशाह ए हिंद शाहजहां भी अमर सिंह के गुस्से से डर गए थे और वहां से दुम दबाकर भाग खड़े हुए थे.

वहीं जब तक मुगलों सिपाही संभालते तब तक अमर सिंह वहां से निकल चुके थे लेकिन राजा अमर सिंह जब तक अपने राज्य में पहुंचे युद्ध तो खत्म हो चुका था. एक तरबूज सैकड़ो सिपाहियों का काल बन गया. हालांकि इस युद्ध में कौन जीता इसके बारे में कुछ कहा नहीं जा सकता लेकिन ज्यादातर जगहों पर बीकानेर रियासत के राजा करण सिंह के जीतने का जिक्र मिलता है इसका मतलब था कि तरबूज सिल्वर गांव के किसान को ही मिला जिसने अपने खेत में बेल लगाई थी लेकिन यहां पर एक ट्विस्ट है.

दरअसल कहा जाता है कि जिस तरबूज के लिए युद्ध लड़ा जा रहा था उसे गांव का कोई भूखा आदमी उसे लेकर के खा गया. आपको ये कहानी कैसी लगी हमें जरूर बताए.

ALSO READ: नीम करोली बाबा की अनोखी शक्तियां जानकर आप भी शौक हो जाओगे!

Related Post

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *